Exclusive Interview: आम बजट 2022-23 से जुड़े हर मुद्दे पर ख़ास बातचीत शिशिर सिन्हा के साथ

आगामी आम बजट को लेकर अगर आपके मन में कोई सवाल है, और आपको उसका जवाब नहीं मिल रहा हैं, तो परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि बजट से ठीक पहले आपके मन में चल रहे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, मंहगाई, और इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े सवालों का जवाब देने के लिए हमारे बीच मौजूद हैं, वरिष्ठ बिजनेस पत्रकार और जाने माने बजट विशेषज्ञ "श्री शिशिर सिन्हा

Union Budget 2022-23 Exclusive Interview with Shishir Sinha
Shishir Sinha

सवाल जवाब के सिलसिले से पहले हम आपको "शिशिर सिन्हा" का परिचय कराते हैं।

आज हमारे बीच जाने-माने बिजनेस पत्रकार शिशिर सिन्हा मौजूद है। पटना से ताल्लुक रखने वाले "शिशिर सिन्हा" ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर्स और पत्रकारिता में स्नातक किया है।

उन्होंने पत्रकारिता में 1995 में एक रिपोर्टर के तौर पर दैनिक अखबार अमर उजाला ज्वाइन किया। लेकिन उनकी असली पहचान 1998 में बनी जब उन्होंने बतौर एंकर "आज तक" चैनल पर बिजनेस शो किया। इसके बाद उन्होंने डिप्टी ब्यूरो चीफ के तौर पर "सीएनबीसी आवाज" चैनल ज्वाइन किया।

टेलीविजन के बाद सर का रुझान "द हिंदू बिजनेस लाइन" मे गया जहां पर उन्होंने डिप्टी एडिटर के तौर पर काम किया। टेलीविजन ने उन्हें एक बार फिर अपनी ओर खींचा जिसके बाद उन्होंने बतौर बिजनेस एडिटर "एबीपी न्यूज" ज्वाइन किया। वर्तमान समय में सर "द हिंदू बिजनेस लाइन" में सीनियर डिप्टी एडिटर कार्यरत हैं। 

वो लगातार वर्ष 2000 से अब तक 20 से भी ज्यादा बजट कवर कर चुके हैं और बजट से संबंधित जानकारियों पर लगातार समाचार पत्रों, टेलीविजन और सोशल मीडिया पर अपनी राय देते रहते हैं।

अब आपके बीच पेश हैं, आगामी बजट को लेकर साजन कुमार और सौम्या का "शिशिर सिन्हा" के साथ Exclusive बातचीत के मुख्य अंश:

सवाल: आप एक बिजनेस पत्रकार के रूप में पिछले 20 वर्षों से भी अधिक समय से बजट कवर कर रहे हैं, एक विशेषज्ञ के नाते आगामी बजट को आप किस तरह देखते हैं? देश के आम नागरिक को इस बजट से क्या क्या उम्मीदें रखनी चाहिए?

जवाब: यह तीसरा वर्ष है जब हम महामारी के बीच में बजट की बात कर रहे हैं (वर्ष 2020-21, 2021-22 और 2022-23) तो जाहिर सी बात है कि बहुत ज्यादा चुनौतियां होंगी। सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि आपकी आमदनी के बढ़ने के साथ-साथ खर्चे भी बढ़ रहे हैं और जिस रफ्तार से खर्चा बढ़ रहा है, उस रफ्तार से आमदनी नहीं बढ़ रही है तो इससे घाटा भी ज्यादा रहेगा। घाटे को भी नियंत्रण में रखना है क्योंकि लंबे समय तक घाटे को ऊंचे स्तर पर बनाए रखना भी तर्कपूर्ण नहीं है। पहली चुनौती आमदनी के बढ़ने की रफ्तार को और तेज करने की है ताकि खर्चों में हो रही बढ़ोतरी से निपटने में मदद मिल सके। 

दूसरा घाटा, जिसको अर्थशास्त्र की भाषा में राजकोषीय घाटा या फिसकल डिफिसिट कहते हैं उसको नियंत्रण में करना है। 2020-21 में घाटा काफी ज्यादा था। 2021-22 में उस घाटे को 6% तक लाने की बात कही गई और अब यह चर्चा है कि क्या हम इसे और कम करें। एक कानून है जिसे फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी बजट मैनेजमेंट एक्ट (एफआरबीएम) कहते हैं। उसके तहत जो फिस्कल डेफिसिट है उसको 3% तक लाने की बात है। हालांकि, इसमें विशेष परिस्थितियों में छूट दी जा सकती है, जिसे पॉज कहते हैं। यह विशेष परिस्थिति है लेकिन घाटा बहुत ज्यादा बढ़ता है तो इसका मतलब यह होगा कि हम बाजार से ज्यादा उधारी लेंगे, तो आने वाले सालों में उसका ब्याज और उस कर्ज को चुकाने में संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा चला जाएगा। नतीजा यह होगा कि आपके ऊपर ब्याज और कर्ज चुकाने का बोझ बढ़ता जाएगा। जिससे आने वाले समय में विकास के लिए संसाधन और भी कम हो जाएंगे। 

अगली बड़ी चुनौती है हम घाटे को कैसे कम या स्थिर कर सकें। चौथा मुद्दा जो कई जनकल्याणकारी योजनाएं जैसे पीएम गरीब किसान, खाद्यान्न या मनरेगा की बात करें। उन पर आवंटन बढ़ाना और दूसरी ओर जो बड़ी चीजें हैं शिक्षा और स्वास्थ्य। खास तौर पर स्वास्थ्य। बीते वर्ष इसमें आवंटन बढ़ाया गया लेकिन अभी उसे और ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है। वैक्सीन के ऊपर भी खर्च बढ़ाने की जरूरत है। पांचवा जो कि सबसे ज्यादा अहम है, क्योंकि इस समय पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। आम चुनाव से ठीक पहले यह एक ऐसा बजट होगा जिसमें सरकार बड़े एलान कर सकती हैं। क्योंकि अगले वर्ष उसका दबाव अलग हो जाएगा तो उसको देखते हुए लोकलुभावन बनाम अर्थनीति की स्थिति होगी। यह देखने वाली बात है कि उनके बीच संतुलन बनाने की कोशिश होगी या केवल लोकलुभावन बातें होंगी या फिर अर्थव्यवस्था की जो वास्तविक जरूरत है उस पर ध्यान होगा। यह पाँच बातें ऐसी है जिसको लेकर इस बजट पर हमारी नजर रहेगी।

सवाल: पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर यदि सरकार कोई लोकलुभावन वादे करती हैं तो क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं होगा?

जवाब: कई बार ऐसा होता है कि लोकलुभावन की परिभाषा को लेकर भी विवाद छिड़ जाता है। अर्थशास्त्री लोकलुभावन को अर्थशास्त्र के खिलाफ बताते हैं। उनको लगता है कि लोगों के लिए ज्यादा कल्याण की बातें करना अर्थशास्त्र की नीतियों के हिसाब से सही नहीं है। जबकि एक राजनीतिक दल सोचता है कि लोगों को ज्यादा लुभाने के लिए हम क्या कर सकते हैं। यह संघर्ष या टकराव की स्थिति हमेशा बनी रहती है।

नियम कहता है कि आप ऐसा ना करें, परंपरा कहता है कि यह पुरानी हो चुकी है, इसे बदल डालो। तो ऐसी बहुत सारी चीजें आपको बजट में देखने को मिलेगी जो नियम के हिसाब से सही है और परंपरा के हिसाब से गलत आप अगर आचार संहिता की बात करते हैं तो आचार संहिता यह कहता है कि उस राज्य विशेष के लिए आप कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन देश में 28 राज्य हैं, पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं तो क्या सरकार बाकी के राज्यों के बारे में नहीं सोचें।

ऐसा तो नहीं है कि किसान योजना में यदि रकम बढ़ा दी जाए तो सिर्फ उत्तर प्रदेश के किसान को ही फायदा होगा और महाराष्ट्र के किसान को नहीं। महाराष्ट्र में तो चुनाव नहीं होने वाला है। यहां पर चुनाव आयोग के प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी यह सवाल उठा था कि क्या बजट को लेकर आप कुछ दिशानिर्देश तय करेंगे तो उनका यह कहना था कि यह एक संवैधानिक जिम्मेदारी है, देश में कई और राज्य भी हैं जहां पर चुनाव नहीं है तो यह सरकार का विषय वस्तु है।

यदि आप एक खास योजना खास प्रदेश के लिए करते हैं तो यह आचार संहिता के खिलाफ है। वहीं अगर देशव्यापी स्तर पर योजना लागू करते हैं तो यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। हालांकि, इसका फायदा उत्तर प्रदेश सहित अन्य चुनावी राज्यों में मिल सकता हैं। क्योंकि उत्तर प्रदेश की आबादी काफी ज्यादा है तो जाहिर सी बात है कि उसका फायदा भी ज्यादा बड़ा होगा।

सवाल: पिछले वर्ष कोरोनावायरस महामारी के कारण स्वास्थ्य सेक्टर पर ज़्यादा फोकस था। क्या इसी तरह हर बजट में सरकार किसी छोटे सेक्टर पर ध्यान देकर उसे ऊपर उठा सकतीं हैं?

जबाव: बिल्कुल, महामारी ने हमें यह एहसास करा दिया कि हमें स्वास्थ्य को लेकर बहुत कुछ करने की जरूरत हैं। कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह अस्पताल, अस्पतालों में बेड तथा ऑक्सीजन सिलेंडर की कमीं देखने को मिलीं। भगवान ना करें की ऐसी परिस्थिति हमें दोबारा देखनी पड़े। हमें नहीं मालूम कि कौन सी विपदा किस रूप में हमारे सामने आएगी। इसलिए सरकार को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सरकारी अस्पताल को विकसित करना चाहिए। देश में लगभग 6 लाख गांव है, वहां की जनसंख्या और अस्पतालों के बेड का अनुपात देखा जाए तो स्थिति गंभीर दिखती हैं। इसलिए यह बेहतर मौका है कि सरकार इस क्षेत्र पर निवेश करें।

सवाल: क्या आगामी बजट में टैक्स की दरों को कम कर आम आदमी को राहत दी जा सकती हैं?

जवाब: आगामी बजट में टैक्स की दरों में बहुत ज्यादा फेरबदल की गुंजाइश नहीं है। आपको एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि हमारे पास दो प्रकार की दरें हैं, एक प्रत्यक्ष कर और एक अप्रत्यक्ष कर। प्रत्यक्ष कर में आयकर की बात की जाती है, वास्तविक रूप में टैक्स देने वालों की संख्या बहुत कम है। यदि अप्रत्यक्ष कर से इसकी तुलना की जाए तो वहां पर जीएसटी है। जो बजट में शामिल नहीं है। बजट में छूट बात करें तो आयकर में थोड़ी बहुत हो सकती है। लेकिन हमें ध्यान में रखना है कि जीएसटी में क्या होने वाला है जो कि बजट से बाहर है, बजट पेश होने के महीने भर बाद जब जीएसटी काउंसिल की बैठक होगी तब आम लोगों के लिए बड़ी राहत की उम्मीद हो सकती है। यहां पर आयकर में थोड़ी बहुत फेरबदल की बात सोच सकते हैं।

सवाल: वर्तमान समय में बेरोजगारी बहुत बड़ा मुद्दा है, खासकर कोरोना महामारी के बाद बेरोजगारी में और भी वृद्धि हुई है। इस बजट में सरकार रोजगार को लेकर क्या-क्या कर सकती हैं?

जवाब: रोजगार के मौके ज्यादा से ज्यादा तैयार हो इसके लिए सरकार के पास पास दो विकल्प होते हैं। एक जो छोटे, मझोले और बड़े उद्योग हैं उनको कैसे प्रोत्साहित करें कि वो नया निवेश करें, बाजार में नई कंपनियां शुरू करें। दूसरा यह होता है कि हम लोगों को उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित करें। 

पहला विकल्प: जहां तक कंपनियों को प्रोत्साहित करने की बात है और खास तौर पर जो माइक्रो स्मॉल एंटरप्राइजेज हैं। जहां सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग जिसमें बड़े पैमाने पर रोजगार के मौके बनते हैं। एक अनुमान है कि लगभग 11 से 12 करोड़ रोजगार के मौके एमएसएमई में बनते हैं तो यह एक अच्छा मौका होगा कि जब हम एमएसएमई के लिए नई व्यवस्था करें। चाहे हम उनको कर के लिए प्रोत्साहित करें, कर में छूट दें या फिर नया काम शुरू करने के लिए उनके लिए पूंजी का इंतजाम किया जाए। उनके लिए निर्यात के ज्यादा से ज्यादा मौके बने इसके लिए बाजार का इंतजाम किया जाए। इससे रोजगार के ज्यादा मौके तैयार करने में मदद मिलेगी।

दूसरा विकल्प: बड़ी कंपनियों के कॉरपोरेट टैक्स में पहले ही कमी की जा चुकी है। अब बहुत ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं बनती है लेकिन कंपनियों के ईपीएफ में सरकार कंट्रीब्यूट करके उनको ज्यादा नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं।

एमएसएमई के ऊपर ज्यादा फोकस होना चाहिए क्योंकि इसमें रोजगार के ज्यादा मौके बनते हैं। बड़ी कंपनियों के लिए विकल्प सीमित है। इसके साथ-साथ जो स्टार्टअप्स है उनके लिए हम नए प्रोत्साहन का ऐलान करें जिससे कि रोजगार लेने की बजाय रोजगार देने की प्रवृत्ति बढ़ सके। इससे भी रोजगार को लेकर जो परेशानी बनती है उससे निपटने में मदद मिलेगी।

सवाल: क्या आगामी आम बजट में सरकार रक्षा बजट को बढ़ा सकतीं हैं?

जवाब: रक्षा बजट पर कभी सवाल उठना भी नहीं चाहिए। पिछली बार लगभग 4 लाख करोड से ज्यादा का प्रावधान किया गया था। हमें रक्षा संसाधनों की जरूरत है, मौजूदा समय में यह रकम काफी कम लगती है। इस रकम को निश्चित तौर पर बढ़ाए जाने की जरूरत है। सरकार के पास संसाधन सीमित है और बहुत सारे दूसरे क्षेत्र भी हैं। उन्हें उनके ऊपर भी काम करना है। इसलिए रक्षा क्षेत्र के बजट में 5 से 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखी जा सकती हैं।

सवाल: पिछले कुछ वर्षों से किसान सरकार से नाराज़ हैं। वहीं हाल ही में तीन कृषि कानून के वापस होने के बाद सरकार बजट में किसानों के लिए क्या ख़ास कर सकतीं हैं?

जवाब: पिछले दो वर्षों (2020-21 और 2021-22) में कृषि इकलौता क्षेत्र हैं, जिसने अर्थव्यवस्था के बाकी क्षेत्रों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। हम विकास के आंकड़े को देखें तो पिछले दो वित्त वर्षों में कृषि क्षेत्र ने लगातार अच्छे नतीजे दिए हैं। अब यह समय है कि हम ऐसे इंतजाम करें जो उनके लिए बेहतर हो और वे ज्यादा विकास कर सकें। हम यह उम्मीद कर रहे हैं कि इस बजट में उनको खाद, कृषि उपकरण इत्यादि पर ज्यादा सब्सिडी मिले और किसानों के लिए लागत में कमी करने और उनकी फसल के लिए वाजिब कीमत मिल सके। पीएम किसान योजना जिसके तहत 2000 रुपए की तीन किश्तों में नकद सहायता दी जाती हैं, उसे भी बढ़ाने की चर्चा चल रही है। यह उपयुक्त समय है कि हम उस रकम को बढ़ा दे क्योंकि यह अपर्याप्त है। 

सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कृषि में बहुत ज्यादा वैल्यू एडिशन देखने को मिल रहा है। वैल्यू एडिशन का मतलब है कि आपका उत्पाद जो है वह बेहतर स्वरूप में उपभोक्ताओं तक पहुंचे। उसमें फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की हिस्सेदारी बढ़ जाती है। जिससे किसान का नुकसान होता है। सरकार पर उसको रोकने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है और इसके अलावा वेयरहाउसिंग का इंतजाम करना भी महत्वपूर्ण हो जाता है तो मुझे लगता है कि इस तीनों चीज के ऊपर चाहे फूड प्रोसेसिंग हो, वेयरहाउसिंग की बात करें या नुकसान की बात करें इसके लिए कुछ इंतजाम करें या अतिरिक्त संसाधन दिए जा सकते हैं। यह किया जाए तो एक उम्मीद की जा सकती है।

सवाल: क्या सरकार आगामी बजट में सड़कों को लेकर जो प्रोजेक्ट चला रही है, उसमें निवेश बढ़ा सकती है?

जवाब: बिल्कुल, सड़क एक ऐसा चीज है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर बड़े पैमाने में रोजगार के मौके तैयार करती हैं। जहां कहीं भी सड़क विकसित होती है, वहां सड़क के दोनों किनारे विकास के लिए मौका बनाती है तो मुझे लगता है कि सड़कों को बनाना और उसे बेहतर करने पर जितना भी निवेश किया जाए वह कम है। लेकिन सड़क पर निवेश केवल सरकार की तरफ से नहीं हो सकता हैं। सरकार केवल सीमित संसाधन ही लगा सकती है इसमें निजी क्षेत्र का भी निवेश आए तब जाकर इसका विकास और फायदा ज्यादा मिलेगा। सरकार निश्चित तौर पर ज्यादा प्रावधान करेगी, क्योंकि इसके फायदे कई गुना ज्यादा होते हैं। साथ ही साथ हम यह भी देखना चाहते हैं कि बुनियादी क्षेत्रों में निजी क्षेत्रों को निवेश बढ़े, वह भी बहुत जरूरी है।

सवाल: सरकार ग्रीन बजट को लेकर क्या-क्या प्रावधान ला सकती है?

जवाब: पर्यावरण, बजट में बहुत बड़ा विषय नहीं है। इसकी चर्चा ज़्यादातर बजट के बाहर होती हैं। बजट में केवल इसकी रूपरेखा रखी जा सकती हैं। लेकिन बजट के बाहर पर्यावरण मंत्रालय और राज्य सरकारों की तरफ से कुछ किया जा सकता है। इसके अलावे बजट में प्रदूषण रोकने के लिए उनके उपाय पर चर्चा की जा सकती है। 

बजट में इलेक्ट्रिकल वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कुछ नए नीति की बात हो सकती हैं। जिससे कि प्रदूषण पर नियंत्रण करने में मदद मिले। हम जानते हैं कि प्रदूषण में एक बड़ी हिस्सेदारी पेट्रोल-डीजल आधारित वाहनों की हैं। इलेक्ट्रिकल वाहनों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी ध्यान दिया जा सकता हैं।

सवाल: क्या सरकार क्रिप्टो करेंसी रेगुलेशन को लेकर कुछ प्रावधान ला सकती है?

जवाब: अभी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पिछले बजट के ठीक पहले देखा गया था कि बजट सत्र के लिए जो विधायी कार्यों की सूची लाई गई थीं। उसमें क्रिप्टो करेंसी रेगुलेशन को शामिल किया गया था, लेकिन वह बिल नहीं आया। उसके बाद मानसून सत्र में उसकी चर्चा ही नहीं हुई। शीतकालीन सत्र में फिर उसको लिस्ट किया गया। लेकिन उसे फिर नहीं लाया गया। अब बजट सत्र में उम्मीद नहीं है कि इस तरह का कोई बिल पेश किया जाएगा। हां, आखिरी समय में क्या हो सकता है, हमें यह नहीं मालूम इसके लिए हमें थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। अभी तक के जो संकेत हैं कि सरकार शायद अपनी स्थिति बताएगी लेकिन कानून या प्रतिबंध जैसी कोई और चीज हो, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।

विशेष आभार: सुरेश कुमार, सुशांक कुमार, सुदीप कुमार, सोवित राठौर, हर्षित पाठक और सोनिया जी का। इन्होंने इस खास इंटरव्यू का प्रबंधन किया। साथ ही साथ सुरेश कुमार ने इस इंटरव्यू का संपादन किया।

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